गंगोलीहाट (पिथौरागढ़) की बेटी ने तोड़ी परंपराएं: पिता को दिया अंतिम सम्मान

गंगोलीहाट (पिथौरागढ़) की बेटी ने तोड़ी परंपराएं: पिता को दिया अंतिम सम्मान
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कम शब्दों में कहें तो, एक बेटी ने अपने पिता को अंतिम विदाई देकर परंपराओं की दीवार को तोड़ा। यह हृदयविदारक घटना गंगोलीहाट (पिथौरागढ़) के इटाना गांव में घटित हुई, जिसने पूरे क्षेत्र को झकझोर कर रख दिया।
मंगलवार को इटाना गांव में मानसिंह (52) पुत्र जीत सिंह अपने पिता का श्राद्ध करने की तैयारी कर रहे थे, तभी वे अचानक बेहोश हो गए और अपने प्राण त्याग दिए। परिवार के सभी सदस्यों ने उनकी मदद करने की कोशिश की, लेकिन वे लौटकर नहीं आ सके। इस दुखद घटना से परिवार में शोक की लहर दौड़ गई।
परिवार में इकलौता बेटा विदेश में नौकरी कर रहा था और दोनों बेटियों की शादी हो चुकी थी। इसलिए इस दुख की घड़ी में, तीसरी बेटी कल्पना ने समाज की कठोर परंपराओं को पीछे छोड़ते हुए अपने पिता की चिता को स्वयं मुखाग्नि दी। सरयू नदी के किनारे (सेराघाट) का यह दृश्य किसी दुखद लेकिन साहसिक निर्णय का प्रतीक बना।
कल्पना ने बिना किसी भय के अपने पिता को अंतिम विदाई दी, जो न केवल एक साहसिक कदम था, बल्कि यह एक प्रतीक भी बन गया कि बेटियों की जिम्मेदारी और सम्मान में कोई कमी नहीं होनी चाहिए। उनके इस कार्य ने यह स्पष्ट किया कि संवेदनशीलता, जिम्मेदारी और मानवता के मार्ग पर चलकर हम परंपराओं में सुधार की आवश्यकता को समझ सकते हैं।
इस दिल दहलाने वाली घटना पर गांववासियों ने भी शोक व्यक्त किया। राजेंद्र सिंह, हरीश सिंह, गोपाल सिंह, बबलू सिंह और किशन सिंह सहित कई ग्रामीणों ने दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि दी और शोक संतप्त परिवार को सहारा देने का प्रयास किया। पूरी क्षेत्र में मातम पसरा हुआ है, लेकिन कल्पना की निडरता और साहस ने सभी के दिलों में एक नई सोच को जन्म दिया है।
यह घटना केवल एक दुखद दुर्घटना नहीं है; यह समाज में बेटियों की भूमिका और उनकी जिम्मेदारी का एक उज्ज्वल परिचायक है। कल्पना का साहस हमें सिखाता है कि संवेदनशीलता, आत्मसम्मान और मानवता की कोई उम्र या लिंग नहीं होता। वह अनिश्चित समय में उठे एक अदम्य इरादे की मिसाल बन गई, जो हमें नई सोच की ओर ले जाने का संकल्प देती है।
इस प्रकार, कल्पना की यह साहसिक पहल केवल उनके परिवार के लिए नहीं, बल्कि समाज के सभी लोगों के लिए एक प्रेरणा है। यह इस बात का प्रमाण है कि परंपराएं तोड़ी जा सकती हैं और सामाजिक बदलाव का आरंभ कर सकते हैं।
इस घटना ने सभी को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि बेटियों की क्षमता और योगदान को स्वीकार करना कितना आवश्यक है। बेटियों को आगे बढ़ने और अपनी पहचान बनाने का अवसर देने का समय आ गया है।
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सादर, टीम नैनिताल समाचार
प्रिया शर्मा
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